" Sense of History- " कल का इतिहास आज का भविष्य" अधिकमास / मलमास मलमास , हिन्दू धर्म का एक ऐसा महीना जब सभी शुभ धार्मिक कार्यों की मनाही होती है , ये ऐसा समय होता है जब आने वाले त्योहारों की तिथि कुछ दिनों के लिए आगे बढ़ जाती है , ध्यान दीजियेगा इस बार रक्षाबंधन , दीपावली ये त्यौहार पिछले साल की अपेक्षा इस साल देर से मनाये जायेंगे भारतीय दर्शन में “ समय ” का बहुत महत्तव है , भारतीय दर्शन में "सूर्य सिद्धांत" जैसे ग्रंथों ने सूर्य और पृथ्वी के चलायमान सम्बन्धो को सटीक अनुमान और वर्णन यूरोप के वैज्ञानिको से कई सौ साल पहले कर लिया था , इसी आधार पर भारतीय संस्कृत में दो तरह के वर्ष प्रचलित है "सौर वर्ष" और "चंद्र वर्ष" सौर वर्ष - हिन्दू Astrology के अनुसार 12 राशियाँ होती है और सूर्य के एक राशि से दूरी राशि में जाना "संक्रांति" कहलाता है और इसे सौर मास कहते है - इस तरह एक वर्ष में 12 सौर मास होते है और 365.2422 दिन होते हैं चंद्र मास -एक चन्द्रमास...
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" Sense of History- " कल का इतिहास आज का भविष्य" Episode 2 ND :1 857 की क्रांति में बहराइच बलरामपुर श्रावस्ती गोंडा के सपूतों का योगदान , इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए , इस भाग में बात करते हैं एक और नायक की गोंडा के राजा देवी बक्श सिंह राजा देवी बक्श सिंह एक विशाल व्यक्तित्व और मजबूत शरीर के धनी और अजनबाहु भी थे , कहते हैं बचपन में एक बार नवाब लखनऊ के दरबार में एक बिगड़ैल घोड़े "सब्ज" को उन्होंने वश में कर लिया था तब से बेगम मलिका किश्वरजहाँ ने उन्हें अपने गोद में बिठाया और मात्र स्नेह दिया जिस वजह से उनका लगाव नवाब दरबार से हमेशा बना रहा और १८५७ की क्रांति के समय वो बेगम हज़रात महल के सहायक के तौर पर बहराइच , बलरामपुर , गोंडा में संगठन मजबूत करने में अहम् भूमिका निभायी तथा प्रत्येक बैठक के मुख्य किरदार रहे कहा जाता है की अंग्रेजों ने देवी बक्स सिंह को रानी के साथ छोड़ने के बदले में उनका राज्य जब्त नहीं किया जायेगा ऐसा प्रलोभन दिया था , लेकिन उन्होंने कहा की शरीर रहते वो अपने माँ का साथ नहीं छोड़ेंगे अंततः 4 मार्च 1857 को राजा साहे...
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Sense of History- " कल का इतिहास आज का भविष्य" Episode 1st :1 857 की क्रांति में बहराइच बलरामपुर श्रावस्ती गोंडा के सपूतों का योगदान , भारतीय इतिहास में 1857 कि क्रांति का वही महत्तव है जो रूसी क्रांति या अमेरिका क्रांति का विश्व इतिहास में हालाँकि इस क्रांति का मूल क्षेत्र अवध ही रहा लेकिन दुर्भाग्यवश अवध या पूर्वांचल के लोग इस क्रांति में अपने पूर्वजो के योगदान से अनभिज्ञ है , या रहे हैं विकास के इस दौर में गोंडा , बहराइच , बलरामपुर , श्रावस्ती हमेशा पिछड़े क्षेत्र रहे हैं शायद यही कारण है की इन स्थानों के इतिहास का उतना गौरवपूर्ण उल्लेख नहीं है जितना कि अन्य क्षेत्र के सेनानियों का हैं , क्योंकि पिछड़ों का इतिहास न लिखा जाता है न उनका कोई इतिहास होता है , खैर इस विषय को यही छोड़ कर हम बढ़ते है 1857 के क्रांति के बहराइच के एक नायक के इतिहास गाथा की तरफ जिनका स्थान मेरी नज़र में इस सन्दर्भ में प्रथम है राजा बलभद्र सिंह - चहलारी क्रांति के समय राजा साहेब की उम्र महज 18 वर्ष के लगभग थी लेकिन इसी उम्र में उनकी बहादुरी की सुगबुगाहट लखनऊ के नवाबों तक पहुंच रह...