Sense of History- "कल का इतिहास आज का भविष्य"

Episode 1st :1857 की क्रांति में बहराइच बलरामपुर श्रावस्ती गोंडा के सपूतों का योगदान ,

भारतीय इतिहास में 1857 कि क्रांति का वही महत्तव है जो रूसी क्रांति या अमेरिका क्रांति का विश्व इतिहास में

हालाँकि इस क्रांति का मूल क्षेत्र अवध ही रहा लेकिन दुर्भाग्यवश अवध या पूर्वांचल के लोग इस क्रांति में अपने पूर्वजो के योगदान से अनभिज्ञ है, या रहे हैं 

विकास के इस दौर में गोंडा,बहराइच,बलरामपुर,श्रावस्ती हमेशा पिछड़े क्षेत्र रहे हैं शायद यही कारण है की इन स्थानों के इतिहास का उतना गौरवपूर्ण उल्लेख नहीं है जितना कि अन्य क्षेत्र के सेनानियों का हैं ,क्योंकि पिछड़ों का इतिहास न लिखा जाता है न उनका कोई इतिहास होता है,खैर इस विषय को यही छोड़ कर हम बढ़ते है 1857  के क्रांति के बहराइच के एक नायक के इतिहास गाथा की तरफ जिनका स्थान मेरी नज़र में इस सन्दर्भ में प्रथम है

राजा बलभद्र सिंह - चहलारी

क्रांति के समय राजा साहेब की उम्र महज 18 वर्ष के लगभग थी लेकिन इसी उम्र में उनकी बहादुरी की सुगबुगाहट लखनऊ के नवाबों तक पहुंच रही थी ,शारीरक तौर पे बात करें तो ब्रिटिश मिलिट्री के सर जॉन हॉप ग्रांट के शब्दों में -राजा बलभद्र सिंह लम्बी चौड़ी देह वाला तेजस्वी व्यक्तित्वशील, चतुर,साहसी फुर्तीला और भयशून्य पुरुष थे,जिस समय 1857  की क्रांति धीर धीरे आग पकड़ रही थी और बेगम हज़रत महल का नेतृत्व में पूरा अवध अंग्रेजो के विरुध संगठित हो रहा थ।

राजा बलभद्र सिंह अपने छोटे भाई के विवाह में व्यस्त थे, तभी बेगम का बुलावा बौंडी के बैठक के लिए आया,राजा बलभद्र ने विवाह बीच में छोड़कर तत्काल बौंडी के लिए रवाना हुए क्यूंकि बेगम से उनके सम्बन्ध बहुत मधुर थे ,जहाँ बेगम ने उनका अपने पुत्र सा स्वागत किया, किसी कवि के शब्दों में

निज सूत को गोदी से तारी

राजहि लीं गोदी बैठारी !

तब बेगम बोली हरषाई !

राजा को ले कंठ लगाई !

तुम सूत सरिस अहो प्रिय मोरे !

कहौं मर्म तो सन प्यारे !

गोंडा इकौना,पयागपुर,चरदा,जैसे कई राजाओं की उपस्थिति के बावजूद  18 बरष के बलभद्र सिंह ने सेना की कमान संभाली और १० जून 1857 को रेठ नदी के किनारे 20 हज़ार सैनिको के साथ अंग्रोजे से घमासान युद्ध हुआ ,अंग्रेजी सेना के पैर उखड़ने लगे,अकेले बलभद्र ने ही युद्ध में कई अंग्रेज सैनिको का वध कर दिया ऐसे में अंग्रेजो ने दूसरे दिन तोपों और आधुनिक युद्ध हथिया मंगाए जिस पर बेगम ने राजा साहेब को युद्ध से लौट आने को कहा लेकिन चहलारी का यह सपूत युद्ध भूमि से लौट आना अपना अपमान समझा और अगले दिन फिर युद्ध किया, इस जबरदस्त लड़ाई में  हांथी घोड़े का साथ छूट जाने पर पैदल ही युद्ध करने लगे ऐसे में होप ग्रांट ने पीछे से वार करके उनका धड़ से अलग कर दिया, ऐसा कहा जाता है की कटे धड़ ने भी कुछ देर तक युद्ध किया जिसे देख कर अंग्रेज सैनिक घबरा गए और मैदान छोड़ के भागने लगे,अंततः राजा बलभद्र वीरगति को प्राप्त हुए लेकिन भारत और बहराइच के इतिहास में अमर हो गए - ऐसे वीर सपूत को नमस्कार !!

युद्ध में बलभद्र सिंह के अदम्य साहस की अंग्रेज सेनानापति ने भी प्रशंसा की और ब्रिटेन की महारानी ने अपने महल में उनका चित्र लगवाया।

द्वारा : दिवाकरलाला

साभार -"ग़दर के फूल" - अमृत लाल नगर

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