·            तुलसीदास की जन्मस्थली कहाँ ?

·        अवधी का महत्तव और विशेषता

·         क्यों राम-चरितमानस सबसे लोकप्रिय राम ग्रन्थ है ?

भारतीय इतिहास के कई तथ्यों को शाशकीय महत्वकांक्षा के अनुसार समय समय पर तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया ,कुछ ऐसे ही तथ्य तुलसीदास जी और उनकी जन्मस्थली और हमारी मातृभाषा/बोली अवधी के साथ भी हुआ है, आइये समझते है,

 वैसे तो रामचरितमानस विश्व का सबसे बड़ा काव्यग्रंथ है, हालाँकि भारत में कई तरह के राम-ग्रन्थ हैं जैसे की कम्बन रामायण ,बाल्मीकि -रामायण ,उत्तर रामायण,और कई सारे अनेक संस्करण और न जाने कितनी कहानियां या फिर कहें "हरी अनंत हरी कथा अनंता" लकिन 500 वर्ष पूर्व लिखी गयी रामचरितमानस इनमे सबसे ज्यादा प्रसिद्द है , भारतीय व्यक्ति चाहे जिस भाषा का हो लेकिन राम कथा का वर्णन उसे रामचरितमानस की चौपाइयों से ही याद है ,और मेरी / हमारी भाषा अवधी में लिखी रामचरितमानस की विशेषता यह है की राम पर लिखा गया यह एक मात्र ग्रन्थ हैं जिसमे श्री राम का चरित्र हैं लेकिन कथानक का हीरो एक "राम भक्त " हैं और अपने प्रभु की महिमा अपने शब्दों में या अन्य भक्तो के (शंकर भगवान,हनुमान जी,काकभुशुण्डि ) के द्वारा उनके चरित्र कथा को संपादित करता है शायद यही कारण है कि जैसे हम फिल्मो में अपने आप को हीरो से जोड़ देते है उसी तरह रामचरितमानस के हर चौपाई में हर भक्त उसको उसके ईश्वर से जोड़ता है और अपने अन्तःकरण से सम्बोधित करता है,एक भक्त द्वारा अपने भगवान् की स्तुति अपनी भाषा में न की किसी व्यक्ति विशेष की जीवनी साहित्यिक रूप में , यही रामचरितमानस को विशेष और सर्वाधिक लोकप्रिय बनाता हैं और यह हमारी मात्रभाषा (अवधी ) में लिखा गया है ,अयोध्या से अवध और अवध से अवधी बस इतना परिचय पार्यप्त है इस बोली का, लेकिन समय के साथ साथ इस बोली को एक पिछड़ेपन की बोली मान ली गयी और तिस्कृत करते हैं,पर ऐसे सारे वो  लोग इस पूर्वाग्रह से ग्रसित है, उनके पूजागृह में अवधी में रचित रामचरितमानस आपको रखी मिलेगी , आखिर अवध से निकली अवधी से बढ़िया कौन सी बोली हैं जो राम के बालस्वरूप को "राम लला" (राम लल्ला) के रूप में एक ही शब्द में व्याख्या कर दें ,आप शायद राम के बाल स्वरुप के वर्णन करने के लिए ऐसा सटीक शब्द किसी और बोली या भाषा में नहीं चुन सकते है

 

लेकिन ये अलग विडम्बना है, जैसे भारत के वामपंथी इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास के साथ छेड़-छाड़ करके उसको तत्कालीन शाशको के अनुसार लिख दिया और कई मूल तथ्यों को बदल दिया जो कि शाश्वत हो गए  वैसे ही इस क्षेत्र के साथ इतिहासकारों ने बहुत अन्याय किया और रामचरितमानस  के रचयिता तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा,एटा और न जाने कहाँ कहाँ बताया गया जबकि रामचरितमानस में प्रयोग किये शुद्ध अवधी के शब्द जैसे बिसराना (भूल जाना- प्रयोग : जौं अनीति कछु भाषौं भाई। तौ मोहि बरजहु भय बिसराई ) "नियर" (नजदीक) लीन्हिस (क्रिया हेतु प्रयोग - क्रोधवंत तब रावन लीन्हिस रथ बैठाई..) "जद्यपि" अवधी में "य " का उच्चारण "ज" से करते हैं जैसे की आप ने अपने बुजुर्गो से सुना होगा जज्ञ=यज्ञ , जमराज =यमराज,और सबसे बढ़िया सरयू =सरजू, तथा अवधी में "श " का उपयोग नहीं होता है तो आप को रामचरितमानस में हर जगह "स" ही मिलेगा , कहने का तात्पर्य, इन शब्दों का प्रयोग और तुलसीदास जी का स्वयं कई कृत्यों में पसका संगम (घाघरा और सरयू का संगम स्थल) सूकरखेत,बहराइच,गोंडा के आस पास के क्षेत्रों का वर्णन प्राकृतिक रूप से ये सिद्ध करता है कि उनका जन्म गोंडा और अयोध्या के बीच में कहीं हुआ था और इस बात के राजस्व  विभाग के भी प्रमाण है लेकिन सरकारों के अनुसार उनकी जन्मस्थली बदलती रही ,

हालांकि आप का ये तर्क हो सकता है की शायद तुलसीदास जी ने अवधी सीखी हो लकिन सीखी भाषा को जाता है जबकि "बोली" आपके पैदा होते ही आपके जिहवा पर विराजमान हो जाती है उसे आप अपने माता के मुख से बोल सकने की क्षमता से पहले से ही सुनते रहते हो , इसी तथ्य को मजबूती देते हुए ,पूरी रामचरितमानस में कहीं भी सामान्य प्रचलित बुंदेली शब्द जैसे "मोड़ा-मोड़ी= लड़का -लड़की , "डोकर-पिता " "नसैनी =सीढ़ी " का प्रयोग नहीं किया है, हाँ कुछ ब्रज के शब्द हैं लकिन वो ब्रज और अवधी दोनों में ही हिंदी के अपभ्रंश रूप में आये है जो लगभग  एक दूसरे से मिलते है जैसे एक शब्द है "ठाढ़ =खड़े रहना " लेकिन केवल इन चंद शब्दों का उपयोग अवधी के महत्तव को कम नहीं कर सकते हैं ,

इस क्षेत्र के किसी मजबूत नेता या राजनितिक रूप से मजबूत प्रतिनिधित्व की कमी ने आज अवधी को वो सम्मान नहीं दिया  और ना ही तुलसीदास जी को इस पवित्र धरा से जैविक रूप से जोड़ पाए और जाने अनजाने में तुलसी  के साथ साथ अवध की भाषीय गरिमा भी हमसे छिन गयी,हमने स्कूली पाठ्य पुस्तको में बिना कोई प्रश्न पूछे अवधी के इस महान लेखक को दूर के जिले का जन्मा मान कर अपनी सांस्कृतिक विरासत भूल गए ,लेकिन समय के साथ साथ ये तर्क भी कहीं विलुप्त ना हो जाए इसलिए अगली पीढ़ी को बताते चलें कम से कम अपने बुजुर्गो की बोली जिसने हमको वैश्विक पहचान दिलाई उसके प्रति हम इतना तो कर ही सकते है

Comments

Popular posts from this blog

Episode 1- "Cat crossing path is good or bad"-"बिल्ली का रास्ता काटना , अन्धविश्वास या प्राचीन विज्ञानं "